नाभि में तेल लगाने पर मिलते हैं आश्चर्यजनक फायदे


 

कहा जाता है कि नाभि ही शरीर सारे मार्ग को खोलती मतलब आपकी नासिका से लेकर आपके सिर तक पहुंचने का एक मार्ग है। यानी कि नासिका में औषधीय तत्वों का प्रयोग किया जाता है, तो मस्तिष्क पर उसका प्रभाव होता है। पैरों के तलवे में तेल का प्रयोग किया जाता है ताकि अच्छी नींद आ सके। योगियों ने मुद्राओं का प्रयोग करके अपनी मन को शांत कर लिया करते हैं। इससे समझा जा सकता है कि आपका शरीर आंतरिक रूप से एक दूसरे से संबंधित है, और जब आप किसी औषधि का प्रयोग करते हैं, तो उसका प्रभाव दूसरे स्थान पर पड़ता है। इस सिद्धांत के आधार पर हम आज के विषय को समझने वाले हैं, और आज का हमारा विषय है "नाभि पर तेल का प्रयोग"।


शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लाभ

नाभि में तेल का प्रयोग करने से पूरे शरीर को फायदे पहुंचाता हैं। नाभि में तेल का प्रयोग करने से अच्छी नींद, मानसिक शांति और ऊर्जा का संचार पूरे शरीर में होता है। जब आप नाभि में तेल का प्रयोग करते हैं, तो उससे पूरे शरीर की नाड़ियों में ऊर्जा का संचार होता है। आप ऊर्जावान अनुभव करते हैं। 

इसके अलावा, नाभि में तेल का प्रयोग करने से आपके शरीर की ऊर्जा संवर्धित होती है और शरीर को पोषण मिलता है। कई लोगों को इसका नियमित प्रयोग करने से लाभ हुआ है और उन्होंने इसे स्वस्थ और ऊर्जावान रहने का एक माध्यम माना है।

इसलिए, नाभि में तेल का प्रयोग करना एक सामान्य और प्राकृतिक उपाय है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।


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नाभि में तेल का प्रयोग से भोजन की सही पचान

जब हम नाभि में तेल का प्रयोग करते हैं, इससे जठराग्नि (पेट के अंदर का शारीरिक ताप जो भोजन पचाने का काम करता है) बढ़ती है। जठराग्नि शरीर के पाचन प्रक्रिया में कार्य करती है और जब यह सही रूप से काम करती है, तो आपका भोजन ठीक से पचता है। अगर जठराग्नि मंद हो जाती है, तो भोजन सही तरीके से नहीं पचता है, जिससे भूख कम हो जाती है और भोजन का सड़ा प्रक्रिया शुरू हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, पेट में अन्न पचने की प्रक्रिया ठीक से नहीं होती है और खाया हुआ भोजन सड़ जाता है।


पेल्विक स्वास्थ्य में सुधार

इसके अलावा, नाभि में तेल का प्रयोग करने से आपका आपूर्ति व्यू संतुलित होता है। यह व्यू नाभि से नीचे के क्षेत्र में कार्य करने वाली होती है, जिससे आपके पेल्विक क्षेत्र में उत्तेजना होती है। इससे मल का निष्कासन संबंधित होता है, जिससे शरीर से टॉक्सिंस बाहर निकलते हैं। यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जिन्हें कांसेप्शन में समस्याएं होती हैं और जो महिलाओं को मासिक धर्म से संबंधित विभिन्न समस्याएं होती हैं। इसके अलावा, नाभि में तेल का प्रयोग करने से आपका आपूर्ति व्यू संतुलित होता है, जिससे आपके शरीर की ऊर्जा संवर्धित होती है और विभिन्न संगठनों को पोषण मिलता है। इस तरह, नाभि में तेल का प्रयोग करना एक प्राकृतिक उपाय है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।


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त्वचा को चमकदार बनाएं

नाभि में तेल का प्रयोग करने से विभिन्न प्रकार के फायदे होते हैं, साथ ही आपकी त्वचा भी चमकदार रहती है। अगर होंठ फट जाएं तो नाभि में तेल लगाएं, जिससे स्क्रीन के ड्राईनेस में सुधार हो सकता है। स्क्रीन बहुत ज्यादा ड्राई, आंखें थकी हुई हैं तो नाभि पुराण का अभ्यास करने से स्क्रीन की इस समस्या समाप्त हो सकता है। आपके चेहरे का सौंदर्य बढ़ता है और आपकी त्वचा के स्वास्थ्य के लिए यह उपयोगी है।

मानसिक प्रभाव के बारे में जो योग सिद्धांतों में कहा गया है, उससे हम जानते हैं कि हमारी नाड़ियां ऊर्जा का पथ होती हैं और जब ये रुक जाती हैं तो शरीर में तकलीफों का दौर भी शुरु हो जाता है। इस प्रयोग को करने से नाड़ियों में सुधार होता है, जिससे मानसिक तनाव आदि की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। 


वात और पित्त प्रकृतियों के लिए उपयुक्त तेलों का सफल उपयोग

इसके अलावा, वात प्रकृति और पित्त प्रकृति के लिए उपयोगी है, जिनको अनेक समस्याएं हो सकती हैं जैसे कि ब्लोटिंग, आंखों की कमजोरी, जोड़ों में दर्द, बालों का झडऩा, अल्सर आदि। इस उपयोग को अपनाने के बाद समस्याएं कम हो जाती है और आपका स्वास्थ्य सुधारने लगता है। कफ प्रकृति वाले लोगों के लिए उपयुक्त तेलों जैसे कि सरसों का तेल, तिल का तेल, बादाम का तेल, नारियल का तेल और देसी घी आदि का प्रयोग करें। यह सभी तेल वात प्रकृति के लिए भी फायदेमंद हैं, लेकिन अगर पित्त प्रकृति है तो नारियल का तेल और देसी घी सही रहता है।


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शारीरिक सौंदर्य और स्वास्थ्य के लाभ के लिए

नाभि पुराण का अभ्यास सुबह के समय खाली पेट करना है और शॉक, दुबले होंठ, चेहरे की सौंदर्य बनाए रखने के लिए उत्कृष्ट है। इसे प्रतिदिन 10-15 मिनट तक करना है। तेल को नाभि में 10 मिनट तक भरने के बाद, आपको उंगली से नाभि के अंदर और बाहर गोलाई चलना है। इस अभ्यास को करने का सही समय है सुबह के समय खाली पेट में, जब शरीर ताजगी से भरा होता है। यदि आप दिन में भी करना चाहते हैं, तो इसे आधे घंटे बाद करना चाहिए। यह अभ्यास कफ और पित्त प्रकृति के लिए फायदेमंद है, लेकिन सभी को ध्यान रखना चाहिए कि तेल को सीधा गरम नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे थोड़ा सा गरम करके उपयोग करना चाहिए। इस अभ्यास के बाद, पानी से धोना अच्छा रहता है और स्नान करने के बाद भी तेल को साफ़ करना महत्वपूर्ण है।


हालांकि, इस तकनीक को उन व्यक्तियों को ध्यान में रखना चाहिए जिनकी पेट से संबंधित कोई सर्जरी हुई है, जैसे हर्निया या अलसर की गंभीर समस्या हो। इन व्यक्तियों को नाभि पुराण का अभ्यास नहीं करना चाहिए। विशेषकर, प्रेगनेंसी के समय भी इसे नहीं किया जाना चाहिए। बाकी सभी स्थितियों में यह अभ्यास सुरक्षित, सरल, और सहज है, और आप इसे घर पर आसानी से कर सकते हैं, जिससे विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है।"


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